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आरती

आरती-मल्ल-नाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

मल्ल-नाथ आरती

मैं उताऊँ आरतिया ।
मल्ल-शल्ल त्रय संहारक की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।
मैं निहारूँ मूरतिया ।

लगा के टकटकी ।
छव न ऐसी और दिखी ।।
देखी सारी दुनिया ।
मैं उताऊँ आरतिया ।
साथ घी का दिया ।
हाथ सोने की थरिया ।।
मैं उतारूँ आरतिया ।

नाम गर्भ इक कल्याणक की ।
देखे माँ सोलह सुपनन की ।।
वर्षे झिर लग गगन रतन की ।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।

नाम जन्म इक कल्याणक की ।
मेर तीर्थकर बाल न्हवन की ।
‘दर्शन’ विरच सहस्र नयन की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।

नाम त्याग इक कल्याणक की ।
‘जो वन’ किये केश लुञ्चन की ।
दीक्षा नगन वेश-मुञ्चन की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।

नाम ज्ञान इक कल्याणक की ।
नन्त चतुष्टय समव-शरण की ।
जीवन मुक्त उपाध वरण की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।

नाम मोक्ष इक कल्याणक की ।
कर्म हनन की, ऊर्ध्व गमन की ।
समय पात्र-शिव सदन चरण की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।
मैं उताऊँ आरतिया ।
मल्ल-शल्ल त्रय संहारक की ।।
द्वितिय बालयति जिन नायक की ।।
मैं निहारूँ मूरतिया ।

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