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आरती

आरती-धर्म नाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

धर्म नाथ आरती

धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ

आरती उतारुँ मैं, ढ़ोलक मजीरे साथ
लिये घृत दीपक हाथ,
आरती उतारूँ मैं, ढ़ोलक मजीरे साथ

माँ सुप्रभा दृग् सितार ।
नृप भानु-राजा दुलार ।।
श्रृंगार कुरु वंश माथ ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ

धन पुर-रतन अवतार ।
तप्त-स्वर्ण-भा मनहार ।।
चिह्न वज्र अंगुष्ठ पाद ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ

तज राज, घर-परवार ।
‘चीर’ चीर, केश-उखाड़ ।।
पूर्ण ज्ञान केवल मुराद ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ

समशरण धुनि ओंकार ।
अर ‘अर’-अघात घात चार ।।
‘सहजो निरा’कुल उपाध ।
धर्म नाथ-जय, धर्मनाथ-जय,
धर्म नाथ जय, धर्मनाथ

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