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आरती

आचार्य श्री आरती-8

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।
विद्यागुरु सतजुग निर्ग्रन्था ।
विद्यागुरु कलजुग अरिहन्ता ।।
भावी इक शिव राधा कन्ता ।
विद्यागुरु चल आगम ग्रन्था ।।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।१।।

विद्यागुरु इक गगन सितारे ।
विद्यागुरु इक तारणहारे ।।
प्रतिभा रत संस्कृति रखवाले ।
विद्यागुरु इक शरण सहारे ।।
ला श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।२।।

विद्यागुरु बल बालक बाला ।
विद्यागुरु कलिकाल गुपाला ।।
नभ धरती पाताल उजाला ।
विद्यागुरु व्रति भाल विशाला ।।
मोती से आंख भिंजाओ ।
ला श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
उर लौं गुरु नाम जगाओ ।
दीपों की थाल सजाओ ।
विद्यागुरु की आ-रति उतारें आओ ।।३।।

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