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आरती

आचार्य श्री आरती-6

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।।

पूरण मल्-लप्पा मनकाम ।
श्रीमति हाथ सुकृत परिणाम ।।
चांद शरद गोदी अभिराम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।१।।

लुभा न पाये भोग तमाम ।
पुष्प-बाण करने नाकाम,
गुरु चरणन आ किया प्रणाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।२।।

लुंचन केश, छोड़ धन-धाम ।
मुंचन भेष साक्ष मुनि स्वाम ।।
सहजो सजग सुबह क्या शाम ।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।३।।

नखत संघ बिच चन्द्र ललाम ।
साधें जनहित ढ़ेरों काम ।।
कीर्त अगम पाथर जिन-धाम ।।
ज्योत जगा उर श्री गुरु नाम ।
कीजे आ-रति, सुबहो-शाम ।।४।।

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