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आरती

आचार्य श्री आरती-29

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।

नरक पतन से डरे डरे हैं ।
देख पीर पर नैन झिरे हैं ।।
लट लुंचन सज, भज पट मुंचन,
जा बीहड़ वन बीच खड़े हैं ।।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।१।।

घन गर्जन सुन तरु-तल ठाड़े ।
आन खड़े चौराहे जाड़े ।।
ग्रीष्म तपे सूरज चढ़ पर्वत,
तप्त शिला वीरासन माड़े ।।
शिव तक उठने बन कर हल्के ।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।२।।

ऊपर पटल पटल मल साजे ।
उपल जान मृग खाज खुजावे ।।
जित रण चितवन, सहजो सु…मरन,
क्षण आवीचि मरण जब आवे ।।
श्रद्धा सुमन भेंट ले करके ।
ज्योत जगा दीवा घृत भर के ।।
करें आरती आओ मिल के ।
साधु सन्त जन भगवन् कल के ।।३।।

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