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आरती

आचार्य श्री आरती-28

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

झिलमिल झिलमिल दीप जगाओ,
करो आरती आओ ।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।

नरक पतन भयभीत चल पड़े ।
परिषह जय कर प्रीत चल पड़े ।।
पट उतार, झटपट उखाड़ लट,
वन, बन नम्र विनीत चल पड़े ।।
सन्त तीर्थ चल, तीर्थंकर कल,
चरणन अश्रु ढुराओ ।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।१।।

तपे सूर पर्वत चढ़ ठाड़े ।
गुजरी निशि चौराहे जाड़े ।।
देख पौन, बिजुरी, घन गर्जन,
तरु-तल आ वज्रासन माड़े ।।
सन्त कण्ठ मन्दिर मां सरसुति,
आठों अंग नवाओ ।।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।२।।

कर मल पटल सिंगार चले हैं ।
ब्याहन सिरपुर नार चले हैं ।।
झुलस फसल कर्मन हो चौपट,
ले कुछ बनक तुसार चले हैं ।।
सन्त हंस अध्यात्म सरोवर,
सांची लगन लगाओ ।।
सन्त देवता इस धरती के,
श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।।३।।

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