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आरती

आचार्य श्री आरती-23

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

ले के ज्योती हाथों में ।
ले के मोती हाथों में ।।
मिल के आरतिया कीजे ।
धन भव मानव कर लीजे ।।

नरक पतन भयभीत मुनी ।
मीत जगत् त्रय प्रीत गुणी ।।
देख दीन बरसे करुणा,
भाव क्षमा अविनीत जनी ।
गदगद बोल हृदय भींजे ।
मिल के आरतिया कीजे ।।१।।

घन गर्जन, तरुतल ठाड़े ।
चतुपथ आन खड़े जाड़े ।।
सूर सामना चढ़ पर्वत,
जब लू लपट विकट चाले ।।
पुलकन रोम, ताल दीजे ।
मिल के आरतिया कीजे ।।२।।

सार्थ श्रमण मन श्रम रीता ।
रग रग झंकृत स्वर गीता ।।
साध धनी समता, मौनी,
हित सु…मरण, लोचन तीजे ।
ले के ज्योती हाथों में ।
ले के मोती हाथों में ।।
मिल के आरतिया कीजे ।
धन भव मानव कर लीजे ।।३।।

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