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आरती

आचार्य श्री आरती-18

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

ले माल दीपिका हाथों में ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।
ले धार मोतिका आखों में ।।
ले माल दीपिका हाथों में ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।१।।

नरक पतन डर चाले वन को ।
वश में रखते अपने मन को ।।
तन को तन-ख्वा दे, न ‘कि वेतन,
याद न करते छोड़े धन को ।।
उर गुरु नाम ज्योति प्रकटाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।२।।

सुन गर्जन घन तरु-तल ठाड़े ।
आन खड़े चौराहे जाड़े ।।
सम्मुख शूर खड़े पर्वत चढ़,
जब लू लपट थपेड़े मारे ।।
सहजो श्रद्धा सुमन चढ़ाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।३।।

मल पालट तन शोभ बढ़ावें ।
शिला जान मृग खाज खुजावें ।।
सुख दुख कृत कर्मन उपाध लख,
हेत समाध स्वात्म थिर ध्यावें ।।
धन-धन अपनो जन्म बनाओ ।
गुरु की आरती उतारो आओ ।।४।।

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