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आरती

आचार्य श्री आरती-17

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

मोति सीप आखों में ।
ले लो दीप हाथों में ।।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।

मां श्री मन्ती हाथ पूर्ण, चन्द्रमा लागा ।
सदलगा इक ग्राम पुण्य, सातिशाय जागा ।
श्रद्धा भक्ति प्रकटाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।१।।

प्रतिमा ब्रह्म-चर्य गोम्म-टेश स-विधी ।
दीक्षा दिगम्बर सूरि, ज्ञान सन्निधी ।।
गुरु नाम ज्योति जगाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।२।।

दीक्षा श्रमण-अर्जिका, एलक-क्षुल्लक ।
पीछे छूटी अंगुलियाँ, गिनती है मुलक ।।
अपूरब पुण्य कमाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।३।।

जनहित गोशाला पूर्णायु, प्रतिभा स्थली ।
शान्ति दुग्ध-धारा प्रतिभा, प्रतिक्षा खुली ।।
सक्रिय समदर्शन पाओ ।
उतारो आरती आओ,
आओ गुरु के गुण गाओ ।।४।।

गा दूॅं गुण दो-चार कैसे ? गिन लूॅं सितारे ।
आशा सुख निराकुल ले, समपर्ण तुम द्वारे ।।
=दोहा=
जग जाहिर गुरु आपको,
भारी बड़ो जहाज ।
भार म्हार कम, ले चलो,
शिव तक, राखो लाज ।।५।।

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